My Shelfari Bookshelf

Shelfari: Book reviews on your book blog

Monday, August 10, 2009

खुद को कैसे समझाए कि ........




खुद को कैसे समझाए कि ....

ना खुद पे चले जो़र कोई ......

ना चले तुम पे कोई जो़र....



खुद को कैसे समझाए कि  ......

तुम तो आपना मान चुके उनको ....

तुमको भी आपना माना है उसने .......



खुद को कैसे समझाए कि  .....

जो अपनापन महसूस किया दोनों ने .....

वो अपनापन आब क्यों नहीं दोनों में ....



खुद को कैसे समझाए कि  .......

मै तो नहीं बदली न मेरे एहसास ...

जाने क्यों बदले से एहसास है उनके ...



खुद को कैसे समझाए कि  ......

जब दिल से दिल जुड़ते है तो एक सा एहसास होता है ....


वक़्त के साथ क्यों बदल जाते है ये दिल के एहसास ....

खुद को कैसे समझाए कि ....

श्रुति मेहेंदले  6th अगस्त 2009   

No comments:

Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected