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Shelfari: Book reviews on your book blog

Monday, October 19, 2009

बचपन क्यों है चला जाता....

बचपन क्यों है चला जाता....
कभी कभी मै अपने बचपन कि सैर पर निकल पड़ती हु ....
कितना निर्मल और निष्पक्ष होता है ये बचपन ...
ना ये जाने भेद भावः ना ये करे पक्षपात .....
जीवन कितना सरल होता है बचपन का ,,,
बस जहा प्यार मिला वही बे़ल कि तरह पनपने लगता है ...
बचपन कुछ ना मांगे सिर्फ मांगे प्यार और ममता कि चाव ...
जिसका बचपन प्यार और ममता कि छाव से सराबोर होता है ....
वो बड़ा होके एक हरे-भरे वृक्ष कि भांति होता है ....
जो सबको आपनी निर्मल छाया में पनाह देता है ...


श्रुति मेहेंदले 19th ओक्टुबर 2009

आज कल मै अपनेआप से बात कर लती हु....



आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


जाने क्यों ज़िन्दगी जैसे अनकहे सवालो कि पहेली सी है....
ज़िन्दगी कि इन्ही पहेली को सुल्ज़ने का प्रयास है मेरा ...
जिसे माना है आपना उसे पा के भी ना आपना पाना.....
ये मेरी परिस्थिति खुदही मेरे लिए एक सावल है ...
जिसका जवाब मै रोज़ अपनेआप से तलाशती हू... 
आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


ये जो ज़िन्दगी के ये अनसुलझे सावाल है .....
ज़िन्दगी को एक नया मोडे दे रही है ...
इसको कभी तो मै बड़ी सरलता से आपना लेती हू  ...
जानते हुए कि प्यार सिर्फ पाने का नाम ही नही ...
पर एक अहसास है जिसे हम महसूस करते है .....
और जो हम चाहते है वो ज़रूरी नहीं कि पूरी हो जाये ...


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


पर कभी तो ये परिस्थितिया इतना विवश कर जाती है  ...
कि दिल मजबूर हो रो उठता है आपनी ही विवशता पर .....
ना जाने क्यों वक़्त भी नित नए इम्तिहान देने पर मजबूर है करे ...
किसी को क्या बतलाये अपने मन कि व्यथा ...
जब खुद ही न समझ सकी हु कि " मै ही क्यों "...


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हु..........


खुदा से जो शिकायत है वो अपनेआप से कह देती हू  ....
ये सोच के कि मेरे अंदर का खुदा तो मेरी मदद जरूर करेगा ....
कम से कम इस विवशता को सहने कि क्षमता तो देगा ...
ऐ खुदा कुछ तो राह दिखा इस विवशता से ....


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू ..........


श्रुति मेहेंदले 16th ओक्टुबर 2009

Tuesday, October 13, 2009

तुम इसे जीने तो दो.....

तुक्या आये ज़िन्दगी में कि...
कुछ ज़िन्दगी का रुख ही बदल गया ....
जाने अनजाने ही सही कभी सोचा ना था...
कि इतनी शीदत्त से किसी को अपना मानेगे ....
जिस तरह तुमको माना है अपना ...
तुमने वो भी सिखा दिया ....


ये रिश्ता जो हमारा है वक़्त ने अपनेआप बनाया है ...
ये दिल से जुडी बात है इसे ना तुम झुटला सकते हो न मै...
ये वही समझ पायेगा जो इस दौर से गुज़रा है ...
कोई यकी करे या न करे उम्मीद सिर्फ तुम से है ...
कि तुम तो इस बात को ना झुठलाओ ...


जहा एक ख्याल भी तुमसे अलग होने का ...
दिल में एक दर्द का गुबार उठता है ....
वही तुम न जाने कैसे सरलता से ...
अलग होने कि बात कह जाते हो....




माना कि ज़िन्दगी में हमारे रस्ते है अलग...
मगर फिर भी दिल को तो दिल से राह है ....
तो फिर हम या तुम क्यों इस बात से इनकार करे ...
ये रिश्ता वक़्त के साथ साथ अपनेआप जी लेगा ...
जान तुम इसे जीने तो दो......... 

श्रुति मेहेंदले 13th ओक्टुबर 2009

दिल के रिश्ते ....

कभी कभी किसी का ज़िन्दगी में आना
एक अजीब सा सुकून देता है ....
और ना चाहते हुए भी....
एक बेनाम सा रिश्ता बन जाता है ...
भले ही समाज के लिए....
रिश्तो का नाम होना ज़रूरी है ...
पर दिल के रिश्ते समाज के मोहताज नहीं ....
जब भी किसे से जुड़ गया तो .....
जन्मो तक नहीं टूटते ....
कभी कभी तो खून के रिश्ते भी फीके पड़ जाते है ...
इन दिल के रिश्तो के सामने ....


श्रुति मेहेंदले 13th ओक्टुबर 2009

मन कि ये दुविधा मनस्थिति......


मन कि ये  दुविधा मनस्थिति......


कभी अपनी ही परछाई से कतरा के मुह मोड़ लेना तो ....
कभी इसी परछाई में अपनेआप को समेटने कि चाह ..


कभी खून के रिश्ते ही आपनापन खो दे तो ...
कभी बेनाम रिश्तो में अपनेपन कि चाह होना...


श्रुति मेहेंदले 13th ओक्टुबर 2009


Monday, October 12, 2009

ज़िन्दगी के रंग




ज़िन्दगी कभी धुप तो कभी चाव सी है ...
कभी रात तो कभी दिन जैसी है ज़िन्दगी ....


ज़िन्दगी मे कभी अँधेरा है तो कभी उजाला सा लगे ...
कभी  उतार तो कभी चडाव है ज़िन्दगी में


ज़िन्दगी में कभी सुख है तो कभी दुःख है…..
कभी किसी का आना है तो कभी किसी का जाना है ज़िन्दगी में……


ज़िन्दगी में कभी खोना है तो कभी पाना है….
कभी ज़िन्दगी है तो कभी मौत है ज़िन्दगी में……..



श्रुति  मेहेंदले 12th ओक्टुबर 2009

Sunday, October 11, 2009

सफ़र हर पल है बदल रहा ज़िन्दगी का..



सफ़र हर पल है बदल रहा ज़िन्दगी का...
है उस सफ़र पे निकल पड़े ...
जिसकी मंजिल का पता नहीं ....
जाने कब वक़्त करवट बदल ले ....
इसी ख्याल से जो ना सोचा था...
वो भी कर गुज़रे है हम इस मुकाम पे ....

सफ़र हर पल है बदल रहा ज़िन्दगी का...
चाहो ना चाहो फिर भी ज़िन्दगी में ....
कभी ख़ुशी है तो कभी गम ....
कुछ लम्हों कि ख़ुशी जीने के लिए ही सही ...
ज़िन्दगी को खुशगवार है हमने किया ....
अब चाहे सामने गम ही क्यों ना हो ....
उसे भी जी लेगे ख़ुशी ख़ुशी ...

श्रुति मेहेंदले  10th ओक्टुबर 2009

गहराई ....




सागर में कितना पानी है कोई नाप सका है भला ? 
वैस ही प्यार कि गहराई नापना मुश्किल है ...

सागर में कोई समाना  चाहे तो समां जाये ...
वैस ही गर कोई प्यार में समाना  चाहे तो समां जाये ..

सागर के कितने अनगिनत राज है ...
जो कि उसमे डूब के ही जान सकते हो ...... 
वैस ही प्यार के भी अनगिनत पहलू  है  ......
जो कि उसमे डूब जाने वाला ही महसूस कर सकता है ...


श्रुति मेहेंदले 9th सितम्बर 2009 

ज़िन्दगी के कुछ पल जो सिर्फ मेरे है ..


ज़िन्दगी के कुछ पल जो सिर्फ मेरे है ....
जो कि मेरे दिल के करीब है ...
कुछ बाते है तो कुछ लम्हे है ...
जो कि मन के आईने में साफ ज़लकते है...

बाते जो मन को छु गई ...
लम्हे जो दिल में समां गए ...
जब कभी अपनेआप से सामना होता है ...
पानी के बुल बुलो कि तरह ...
मन के गहराई से उभर आते है ....

कितना भी चाहो जब भी ये लम्हे दस्तक देते है....
चहरे पर इक मीठी सी मुस्कान छा जाती है....
मन उन यादो में जैसे खो जाता है ...
  
कहते है कि बीते हुए लुम्हे वापस नहीं आते  ..
लकिन मेरे लिए ये बीते लम्हे रोज़ दस्तक देते है ...
और ज़िन्दगी को जीने कि उमंग देते है ....

ज़िन्दगी के कुछ पल जो सिर्फ मेरे है .....

श्रुति मेहेंदले 11th ओक्टुबर 2009

Sunday, October 4, 2009

ख़ुशी अधूरे ख्वाब कि जो जी रही हु..



ख़ुशी अधूरे ख्वाब कि जो जी रही हु....
जानती हु कि ये ख्वाब न होगे पुरे ....
पर इस ख्वाब को अधुरा ही जीना चाहती हु ....

किसी को इस कदर मानोगे अपना....
कि वो जीवन में तुम्हारे लिए अधुरा ही सही ..
लेकिन फिर भी पूर्णता का अहसास दे ...

मैंने जान लिया है कि कुछ ख्वाब होते है अधूरे ....
उनको अधूरे ही जी लेना चाहिए ...
दिल को एक सुकून का एहसास होता है ..

जानती हु मन में एक डर का एहसास भी होता है ...
कि कही ये ख्वाब अधूरे ही सही पर टूट ना जाये ...
ख्वाब कोई भी हो टूटने पर दर्द का एहसास तो होता है ....

खुदा महफूज़ रखे इन ख्वाबो को ....
क्योंकि कभी कभी अपनी ही नज़र लग जाती है ....
अपने ही ख्वाबो को पिर वो अधुरा सा ही क्यों ना हो  .....


अधूरे ख्वाब है जो जी रही हु लकिन सच में खुश हु ....


श्रुति मेहेंदले  3rd ओक्टुबर  2009  



Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected