बचपन क्यों है चला जाता....
कभी कभी मै अपने बचपन कि सैर पर निकल पड़ती हु ....
कितना निर्मल और निष्पक्ष होता है ये बचपन ...
ना ये जाने भेद भावः ना ये करे पक्षपात .....
जीवन कितना सरल होता है बचपन का ,,,
बस जहा प्यार मिला वही बे़ल कि तरह पनपने लगता है ...
बचपन कुछ ना मांगे सिर्फ मांगे प्यार और ममता कि चाव ...
जिसका बचपन प्यार और ममता कि छाव से सराबोर होता है ....
वो बड़ा होके एक हरे-भरे वृक्ष कि भांति होता है ....
जो सबको आपनी निर्मल छाया में पनाह देता है ...
कभी कभी मै अपने बचपन कि सैर पर निकल पड़ती हु ....
कितना निर्मल और निष्पक्ष होता है ये बचपन ...
ना ये जाने भेद भावः ना ये करे पक्षपात .....
जीवन कितना सरल होता है बचपन का ,,,
बस जहा प्यार मिला वही बे़ल कि तरह पनपने लगता है ...
बचपन कुछ ना मांगे सिर्फ मांगे प्यार और ममता कि चाव ...
जिसका बचपन प्यार और ममता कि छाव से सराबोर होता है ....
वो बड़ा होके एक हरे-भरे वृक्ष कि भांति होता है ....
जो सबको आपनी निर्मल छाया में पनाह देता है ...
श्रुति मेहेंदले 19th ओक्टुबर 2009