My Shelfari Bookshelf

Shelfari: Book reviews on your book blog

Sunday, November 8, 2009

काश गुज़ारा होता कुछ वक़्त अपनों के साथ भी ...

जिंदगी कि रफ़्तार में न जाने क्यों गुम से हो गये ...
और फिर चाह के भी मिल न सकी अपनों से ...
वक़्त ने यू मौत का तमाचा है मारा ...
की ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा कि ...
अपनों के साथ वक़्त न बिता सकी ...
जब तक इंसा जिंदा है मिलने की उम्मीद तो होती है ....
जब छोड़ गये ये जहा तो उम्मीद का सहारा भी है छूट जाता ....
किसी के जाने के बाद है होता एहसास ...
की काश गुज़ारा होता कुछ वक़्त अपनों के साथ भी ...
अब तो दिल की बात दिल में ही रह गई ....
जाने वाले चले गये और हम वक़्त के ...
हातो मजबूर सिर्फ अफ़सोस करते रह गये ...


श्रुति  मेहेंदले  8th नवम्बर  2009
this is for You Antaa kaka.....
my uncle who passed away on 7th Nov 2009

Friday, November 6, 2009

शायद इसीको कहते है ज़िन्दगी ..


गुज़री है ये ज़िन्दगी तुम्हारी  कुछ ...
तनहा और खामोश सी ...
गुस्ताखी  माफ़ हो मेरी जो मैंने ...
इस खामोश और तनहा ज़िन्दगी में दस्तक दी ..
पर इसमें कुछ खुदा कि मर्ज़ी भी है शामिल ...
वर्ना तुम और हम यू ना मिलते ...
न जाने क्यों तुमसे मिल के भी ...
ज़िन्दगी में तुम हो कुछ जुदा-जुदा से ..
फिर भी आलम ये है कि....
तुम्हारे रंग में हम भी है रंग गये....
कहने को तो बहुत कुछ है पर कहे तो क्या कहे... 
तुमको खामोशी है पसंद तो फिर ...
हम भी तुम्हारी खामोशी में है कुछ खामोश से ...
कितना भी चाहे तुमसे मिलना ...
पर ये ज़िन्दगी कि राहे है कुछ जुदा-जुदा सी ....
फिर तुम से यू जुदा हम भी है कुछ तनहा तनहा ...
वक़्त ने ये कैसा खेल है खेला ...
पा के भी तुमको है ज़िन्दगी में कुछ दूरिया  ..
अब तो खुदा से सिर्फ ये है कहना ...
जब जुदा ही थी राहे तो क्यों था मिलाया ...
जाने क्यों अब तो खुदा के...
इस खेल कि आदत सी हो गयी है ...
और फिर सोचती हु शायद ...
वक़्त भी कभी तो करवट बदलेगा ....
शायद इन खामोश राहो पे तनहा चलते-चलते ...
फिर किसी अनजाने मोड़ पे तुमसे मुलाकात हो ...
इसी उम्मीद पे ज़िन्दगी को...
 खुशगवार है मने किया....
शायद इसीको कहते है ज़िन्दगी ... 



श्रुति मेहेंदले 5th नवम्बर  2009






Wednesday, November 4, 2009

ये रिश्तो कि अनसुलझी तस्वीर..... ..

ये रिश्तो कि अनसुलझी तस्वीर..... 


खुदा ही जाने कि रिश्तो कि .....
नींव कब और कहा रख लेता है इंसा ...
और न जाने कब और कैसे .....
पक्की ईमारत के से रिश्ते  ....
जाने किस कारण खँडहर में तब्दील हो जाते है ...
जो रिश्ते लगे कि आज है बने...
न जाने वो कितने जन्मो से चले आ रहे है ...
कभी कभी खून के रिश्ते युही अचानक ...
पराये से हो जाते है ....
खुदा महफूज़ रखे इन रिश्तो को ...
क्योंकि ये रिश्ते ही है जो...
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हमे...
चलते रहने कि मजबूती देते है ....


श्रुति मेहेंदले 4th नवम्बर 2009

Tuesday, November 3, 2009

कैसे कहू.....

कैसे कहू कि खुदा कि रहमत है .... 
जो मरी तुमसे मुलाकात हुई ...


कैसे कहू कि ये इत्तफाक एक दुआ है ...
जो कबूल की हो खुदा ने ...  


कैसे कहू कि तेरा मेरा यू मिलना और...
फिर ये अपनापन का अहसास .. 


कैसे कहू कि तुमको बेइंतिहा चाहना ... 
ये वो जज़्बात है जो मेरे बस में नहीं ... 


कैसे कहू कि ये बात भी उतनी ही सच है कि ... 
इस जज़्बात से सब वाकिफ नहीं ....


कैसे कहू कि मै खुशनसीब हु जो तुमने...
इन एहसासों से रूबरू है मुझको किया .....


श्रुति मेहेंदले 27th अक्टूबर 2009


बस ये मेरे अपने अहसास है ये जिसे जी रही हु ...

ज़िन्दगी के नित नए रूप ....
कुछ न कुछ हमको है सिखाती  ...


जब मैंने सोचा कि ज़िन्दगी में भला अब क्या बदलाव आयेगा ....
तो ज़िन्दगी का रुख ही बदल गया ...
प्यार के एक और पहलु से रूबरू होने का अहसास हुआ  ...
बेइन्तिहः किसी को चाहना और फिर इस चाहत के साथ जीना ....
बस ये मेरे अपने अहसास है जिसे जी रही हु ...


ज़िन्दगी के नित नए रूप ....
कुछ न कुछ हमको है सिखाती  ..


सोच में हु कि क्या नाम दू मै इस रिश्ते को ....
क्योंकि ज़माना ऐसे बेनाम रिश्ते नहीं समझता...
लकिन ज़िन्दगी मे कुछ रिश्ते ऐसे भी होते है .....
जिनका कोई नाम नहीं फिर भी दिल के करीब होते है ...
बस ये मेरे अपने अहसास है जिसे जी रही हु ..


ज़िन्दगी के नित नए रूप ....
कुछ न कुछ हमको है सिखाती  ...


भाला किसी को क्या समझाऊ ये रिश्ता ....
ये मेरे अपने है मुझे किसी को समझाने की...
या किसी की अनुमति कि आवशकता नहीं ....
और जाने क्यों इस बात में मुझे एक सुकून सा है ...
बस ये मेरे अपने अहसास है जिसे जी रही हु ....


ज़िन्दगी के नित नए रूप ....
कुछ न कुछ हमको है सिखाती...


ऐसा नहीं की ज़िन्दगी से शिकायत नहीं ....
अपनेआप से ही जानने की कोशिस में निराश से मुलाकात होती है ...
जानती हु की खुदा भी मेरा इम्तिहान जो ले रहा है ...
सोचा एक इम्तिहान ये भी सही एक नया तजुर्बा ये भी सही ...
बस ये मेरे अपने अहसास है जिसे जी रही हु ...


ज़िन्दगी के नित नए रूप ....
कुछ न कुछ हमको है सिखाती....


ज़िन्दगी के दोराहे से अकेले गुज़र रही हु....
फिर भी एक सुकून है जानती हु कि जो फे़सले है किये...
अपनों से कुछ दुरिया है निभानी फिर भी दिल में फासले नहीं...
दिल कि दुविधामंस्थिति में भी खुश हु ...
बस ये मेरे अपने अहसास है जिसे जी रही हु ....


इसलिए "इस वक़्त को" " इन पालो को" बस जीना चाहती हु...




श्रुति मेहेंदले 20th ओक्टुबर 2009


Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected