तुमने ये कैसे कह दिया की...
क्या तुम सच में मेरी जान हो ...
ये सवाल शायद तुम अपनाप से पूछते ...
तो भी जवाब मिल जाता ...
ये बात अलग है कि तुम ...
इस बात को मानना नहीं चाहते ...
तुम अपनेआप से ही भाग रहें हो ...
तो मेरे वजूद पे तो सवाल आ ही जाता है ...
तुमने न जाने क्यों ...
अपनी सोच को इस तहर ढाल लिया है कि ..
जो सच है उसको भी ....
पहचाने से कतराते नहीं ...
माना कि ज़िन्दगी कुछ इम्तिहान ले रही है ...
इसका मतलब ये नहीं ....
जो अपने है उनको भी ....
ज़िन्दगी मैं तुम पराया कर दो ...
ज़िन्दगी मैं ...
मुश्किल से अपने मिलते है ....
कोशिश कर उनको तो संजो के रखो ..
ये न हो जब वक़्त आये ....
अपनेआप से सामना करने का ...
तो आख़ न मिला सको ...
अपनेआप से ...
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
तुमसे जो ये रूह का रिश्ता है.....
उसे कोइ नाम दू......
ये ज़रुरी तो नहीं...
तुम से है महोबत्त....
इसे दुनिया को दिखाऊ....
ये ज़रुरी तो नहीं...
मेरे मन के आइने मे....
तुम्हरी तस्वीर बिल कुल साफ़ है....
किसी को दीखाऊ ....
ये ज़रूरी तो नहीं....
मेरा दिल क्या चाहे ....
तुम ये जान कर भी दीखाओ.....
ये ज़रुरी तो नहीं....
लेकिन इतना जरूर जानती हूँ ...
कि तुम अनजान नहीं हो ...
इस रूह के रिश्ती से ...
बस इसी बात का सुकून है ....
किसी को बताऊ ...
ये ज़रूरी तो नहीं ...
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
तुम जब साथ होते हो तो ज़िन्दगी की ... ये दूरिय भी गवारा है हमे .......
दिलो में ना हो फासले .......
अब बस यही है दुआ खुदा से .....
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
ज़िन्दगी में तुम आये .....
तो तुमसे है चाहत ...
जाने कबसे है ...
ये चाहत के सिलसिले ...
मुक्कद्दर को न था ये मंज़ूर ..
या फिर तुमको
ये नहीं जान पाई ...
लकिन फिर भी ...
ज़िन्दगी गुज़र रही है ...
तेरी चाहत में ....
अब आलम ये है कि .....
जी रहें है ...
तुमको ना चाहने कि जुस्तजू में ...
तुम क्यों हो ख़फा ज़िन्दगी से
ये तो मैं नहीं जान पाई ...
पर इतना जानती हु कि ......
तुम हो मेरे ही .....
जाने कितने जनमों से ...
खुदा ही जाने ..
फिर क्यों है ...
ये दूरिया और तुम ...
कुछ अनजाने से ....
श्रुति मेहेंदले 19th मे 2010
Welcome to Sentiments
When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected