
इंतजार के भी अपने दो पहलु है ....
एक उम्मीद का तो दूसरा दर्द का ....
इंतजार की हद तो तब है जब ....
उम्मीद दामन छुडाने की कशमकश में हो और ...
तुम दर्द की चादर में लिपटे उम्मीद का दामन थामे रहो ....
इंतजार की इन्तहा तो तब है जब ....
उम्मीद ने दम तोड़ दिया है और....
तुम दर्द की चादर में लिपटे फिर भी इंतजार करो ....
इंतजार में हम दर्द के नशे में डूब....
नाउमीद से भी उम्मीद की अपेक्छा करते है ....
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