My Shelfari Bookshelf

Shelfari: Book reviews on your book blog

Friday, November 26, 2010

बस यही एक तमन्ना है बाकी ...



जब भी तेरा नाम होटो पे आया ....
दिल से सिर्फ दुआ है निकली ...
तुम खुश रहो बस यही है तमन्ना दिल कि ....
तुम्हारी ख़ुशी में है मैने ढूंढे इस तनहा दिल का सुकून ...
वैसे याद तो उनको करते है ...
जिनको हम भुला देते है ...
जाने क्यों चाह कर भी ...
तुमको भुला न सकी ...
आज भी दिल के एक हिस्से में ..
बस तुम ही हो बसे ...
तुमसे है शिकवे कितने 
फिर भी रोज़ ...
तुमको है सजदा करते ...
दर्द तुमने इस दिल को है कितने दिए ...
फिर भी दर्द में मुस्कुराने कि सजा ...
अपने आप को है दी ..
तुमने तो कभी मुड़ के देखा भी नहीं ...
नहीं तो पढ़ लेते इन आखों में कितना है प्यार भरा ...
मैंने तो सिर्फ तुमसे प्यार किया  ...
मैंने खुदा से न चाँद माँगा ...
ना मांगी इस जहा कि दौलत ...
मांगी थी तो सिर्फ...
तुमसे जुड़े रहने कि ख़ुशी ...
गम इस बात का नहीं कि राहें है जुदा जुदा ...
गम इस बात का है कि ...
अब है दिलो में फासले कुछ बढे बढे ...
मैंने तो हर बार चाहा कि ये फासले हो कम ...
 या खुदा गर एक दुआ हो मेरी भी कबूल ..
तो मिटा दे ये दिलो के फासले .. 
बस यही एक तमन्ना है बाकी ... 

श्रुति  मेहेंदले  26th नवम्बर 2010

Sunday, August 29, 2010

मेरी माँ



तुम जैसी भी थी ,थी तो मेरी माँ ...
आज तुम इस जहा में नही तो क्या ..

तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता ...
आज जब मुड़ के पीछे देखती हू तो ...

वो तेरी छोटी छोटी बाते याद आती है ...
अब उन छोटी छोटी बातो के लिए भी तरसना ..

कभी तो तुमसे हर बात पे बहस करके लड़ना ...
आज उस पलो को फिरसे जीने  के लिए तरसना ..

जो कभी मुझको तुम्हारा टोकना लगता था ...
आज उस टोकने को भी तरस गई हू ...

सोचा कि ये क्या बताने वाली बात है पर ...
आज गम इस बात का है कभी तुझसे कहा नहीं की ...

तुझसे कितना प्यार करती हू ..

श्रुति मेहेंदले  29th अगस्त 2010

Wednesday, May 19, 2010

तुमने ये कैसे कह दिया की ....



तुमने  ये  कैसे  कह  दिया  की...
क्या  तुम सच  में  मेरी  जान  हो ...

ये  सवाल  शायद  तुम  अपनाप  से  पूछते ...
तो  भी  जवाब  मिल  जाता  ...
ये  बात  अलग  है  कि  तुम  ...
इस  बात  को  मानना  नहीं  चाहते ...
तुम अपनेआप  से  ही  भाग  रहें  हो ...
तो  मेरे  वजूद  पे  तो  सवाल  आ  ही  जाता  है ...
तुमने  न  जाने  क्यों ...
अपनी  सोच  को  इस  तहर  ढाल  लिया  है  कि ..
जो  सच  है  उसको  भी  ....
पहचाने  से  कतराते  नहीं ...
माना  कि  ज़िन्दगी  कुछ  इम्तिहान  ले  रही  है ...
इसका  मतलब  ये  नहीं ....
जो  अपने  है  उनको  भी ....
ज़िन्दगी  मैं  तुम  पराया  कर  दो ...
ज़िन्दगी  मैं ...
मुश्किल  से  अपने  मिलते  है ....
कोशिश  कर  उनको  तो  संजो  के  रखो ..
ये  न  हो  जब  वक़्त  आये  ....
अपनेआप  से  सामना  करने  का ...
तो  आख़ न  मिला  सको ...

अपनेआप से ...


श्रुति मेहेंदले 19th  में 2010

ये ज़रुरी तो नहीं.....







तुमसे जो ये रूह का रिश्ता है.....
उसे कोइ नाम दू......
ये ज़रुरी तो नहीं...

तुम से है महोबत्त....
इसे दुनिया को दिखाऊ....
ये ज़रुरी तो नहीं...



मेरे मन के आइने मे....
तुम्हरी तस्वीर बिल कुल साफ़ है....
किसी को दीखाऊ ....
ये ज़रूरी तो नहीं....

मेरा दिल क्या चाहे ....
तुम ये जान कर भी दीखाओ.....
ये ज़रुरी तो नहीं....

लेकिन इतना जरूर जानती हूँ  ...
कि तुम अनजान नहीं हो  ...
इस रूह के रिश्ती से ...

बस इसी बात का सुकून है ....
किसी को बताऊ ...
ये ज़रूरी तो नहीं ...


श्रुति मेहेंदले 19th  में 2010

दिलो में ना हो फासले ....

तुम जब साथ होते हो तो ज़िन्दगी की ...
ये दूरिय भी गवारा है हमे .......
दिलो में ना हो फासले  .......
अब बस यही है दुआ खुदा से .....


श्रुति मेहेंदले 19th  में 2010

तेरी चाहत में ....



ज़िन्दगी  में  तुम  आये .....
तो  तुमसे  है  चाहत ...
जाने  कबसे  है  ...
ये  चाहत  के  सिलसिले ...
मुक्कद्दर  को  न  था  ये  मंज़ूर ..
या  फिर  तुमको  
ये  नहीं  जान  पाई ...
लकिन  फिर  भी ...
ज़िन्दगी  गुज़र  रही  है ...
तेरी  चाहत  में   ....
अब  आलम  ये  है  कि .....
जी  रहें  है ...
तुमको  ना चाहने  कि  जुस्तजू  में ...
तुम  क्यों  हो  ख़फा ज़िन्दगी  से  
ये  तो  मैं  नहीं  जान  पाई  ...
पर  इतना  जानती  हु  कि ......
तुम  हो  मेरे  ही .....
जाने  कितने  जनमों से ...
खुदा  ही  जाने ..
फिर  क्यों  है    ...
ये  दूरिया और  तुम ...
कुछ अनजाने  से .... 

श्रुति मेहेंदले 19th  मे 2010

Saturday, March 20, 2010

ये खुदा कि इनायत है .....

ज़िन्दगी के सफ़र में...
इत्तफाकन तुमसे मिलना ....
ये खुदा कि इनायत है ..
इसे दुआ समज कबूल है मैने किया ...
रोज़ सजदा है करते...
खुदा को ...
इस इनायत के चलते ...
गम नहीं की....
 कुछ दूरिय है नसीब में पर...

ये फासले क्यों है दरमीया हमारे ...
हर लम्हा फासले का ...
ख्याल रखना ..
इतना न बढ़ जाए ..
की हम तुम ..
फिर से अजनबी न बन जाए 




श्रुति मेहेंदले 19th मार्च 2010 




Sunday, February 28, 2010

ये तो बस तुमको है चाहे ..



चाहत ने भी ....
अपनी चाहत पे कर यकी  .....
बेहिसाब चाहत है तुमसे की ....
मेरी चाहत न जाने ....
क्या है ज़रूरी या फिर क्या है मजबूरी ...
ये तो बस तुमको है चाहे ...

लोग जाने क्यों....
फिर भी है कहते ....
ना चाहो इतना किसी को .....
की तुम्हारी चाहत....
बन जाये तुम्हारी मजबूरी ....
पर चाहो इतना किसी को .....
की तुम्हारी चाहत बन जाये ...
ज़रूरी उसके लिय......

श्रुति मेहेंदले 28th फरवरी 2010


Monday, February 15, 2010

रूह का रिश्ता......


ज़िन्दगी में तुम ....
युही कभी कभी ....
दस्तक दे दिया करो ....
कुछ अनजानी सी ख़ुशी  ...
जुडी है तुमसे ...
जो रूह तक को ...
सुकून दे जाती है  ...
ये मै भी न जान सकी क्यों ...
लकिन इतना यकी है ...
कि तुम से एक अजीब सा रिश्ता है...
जो हमारी रूह को है जोड़ता ...

श्रुति मेहेंदले 14th फरवरी 2010

Friday, February 12, 2010

आपको देखे अर्सा बीत गये....



आपको देखे अर्सा बीत गये....
आस का दीपक टिमटिमा रहा....
इस जुस्तजु मे कि ....
जाने कब होगा दीदार .....
हमे तो अब भी उस दिन.....
उस पल का है इंतज़ार.....
जब तुम से फ़िर होगी मुलाकत....
हकीकत तो ये है कि ....
हम तो आप कि खुशी मे है खुश....
लेकिन गम तो इस बात का है....
तुम मेरे दिल कि ....
छोटी छोटी खुशीयो को ....
नहीं समझ सके ...
मुझें कल भी इंतज़ार था....
आज भी है ...
मै ज़िंदगी के उसी मुका पे खडी हूँ....
जहा से तुम...

 अकेले ही सफ़र पे निकल पड़े
और मै चाह कर भी...

 तुम तक नहीं पहुँच पा रही ....


श्रुति  मेहेंदले 12th फरवरी 2010 

कुछ लम्हे कि जुस्तजू में ....




दिल मे है दर्द का गुबार...
 होटो पे हसी ...
माना की ज़िंदगी की राहे है जुदा ...
पर रुह ने तो रुह को है पेह्चाना.... 
तभी तो एक चाहत के एहसास ने पनाह ली... 
हम तो तभी से जी रहे है तुम्हारे लिए ..
हमने तो चाहा हर लाम्हा कर दे तुम्हरे नाम...
तुम इस बात से अनजान नहीं ....
वो भी वक़्त था ...
जब तुम्हारा हर मुमकिन लम्हा था ...
हम दोनों का ...
न जाने क्या बात हुई की तुम अब....
कुछ लम्हा भी नहीं कर सकते...
हम दोनों के नाम ..
जानती हु की हर वक़्त एक सा नहीं होता ...
हम मिल के भी...
मिल न सके इस बात का गम नहीं...
गम इस बात का है की...
तुम रूह की तड़प को जानते हुए भी...
अनजाने हो ... . 
वफ़ा की बात तो छोडो...
हम तो सदियो से कर रहे इंतज़ार...
अब तो आस सिर्फ खुदा तुज़ः से ही है...
कुछ इनायत हमारी इन रुहों पर भी कर दो .. 


श्रुति मेहेंदले 12th फरवरी 2010

Friday, February 5, 2010

फिर एक और ज़िन्दगी तनहा गुज़ारने को .....

कैसे....
उन लफ्जों को....
बया करू .... 
कि तुमतक.....
ये दिल कि बात ....
पहुँच सके .... 
तुम अपनेआप में....
इतने सिमट गये कि .....
चाह कर भी तुम तक.... 
मेरे दिल कि आवाज़ ....
नहीं पहुँचती...  
कितनी शिदत से...
है तुमको चाहते .... 
कि अपनेआप को....
मिटा कर भी ...
रखा है....
जिंदा खुदही को ....
सिर्फ इसलिये की .....
एक वादा.....
तुमसे भी किया था कि ...
चाहे कितना भी....
दर्द समेटना पड़े....
तुम्हारे....
इश्क में ..... 
उफ़ तक न करेगे .....
अब तो सिर्फ ...
एक इनायत ...
इस तनहा रूह पे कर ए खुदा... 
कि तुमसे फिर एक मुलाकात हो ....
और झाक सकू.....
उन आखों में ....
फिर एक बार ....
और समेट लू कुछ यादे ...
इस दिल के कोने में ...
फिर एक और ज़िन्दगी...
तनहा गुज़ारने को ....


श्रुति मेहेंदले 5th फ़रवरी 2010


Saturday, January 23, 2010

इत्तफाक कि बात है ....





ज़िन्दगी  के काँरवा में  कई  मोड़  आये .....
और  हम  उनसे  गुज़रते  गये .....
इत्तफाक   कि  बात  है .....
जिस  मोड़  पे  तुमसे  रूबरू  हुए ....
हमारे  कदम  वही  थम  गये ....
जैसे  मुसाफिर  को  अपनी  मंजिल  मिल  गई ...


श्रुति मेहेंदले 21st जनुअरी 2010

Sunday, January 17, 2010

तुम्हारी तस्वीर ..






समय के साथ कहते है ....
तस्वीर कुछ धुन्दला जाती है..
कुछ अनजाने डर के साथ ....
मैंने मन के झरोके में झाका  ....
जहा सहेज के राखी है ..
तुम्हारी तस्वीर ...
तो अब भी तुम्हारी साफ़ ...
तस्वीर ने पलट के देखा .....
मानो पूछ रही हो ...
क्या यकी नहीं .....
अपने प्यार पे ...
कुछ न कह सकी ...
बस एक टक निहारती रही ...
तुम्हारी तस्वीर ...


श्रुति मेहेंदले   16th जनुअरी 2010 

दे रही है दस्तक खुशिया ...




इंतज़ार किसी अपने का ..
क्यों देता है सुकून ..
 कही किसी कोने में...
इस मन के ..
अब भी है यकीन ...
आएगे वो कदम लौट के ...
 खुले है अब भी...
 मन के द्वार ...
 दे रही है दस्तक खुशिया ....
सुन के उन कदमो कि आहट ...


श्रुति मेहेंदले 14th जनुअरी 2010

Friday, January 15, 2010

यकी है मुझे....








कभी तो खुदा से तो कभी जान तुम से ... 
कभी तो है मिली ख़ुशी तो कभी है मिले गम ..
इसी बात को लेके कभी सुकू है तो कभी शिकायत ...
इस कशमकश में हु कि ....
क्या तुमसे कहू तो क्या खुदा से ...
तुमको पा कर भी है...
तुमसे दूरिया...
वक़्त का है ये कैसा खेल ...
जाने क्यों फिर भी ....
यकी है मुझे....
कुछ अपने खुदा पे ...
तो कुछ अपने प्यार पे ....


श्रुति मेहेंदले 15th जनुअरी 2010





तुमसे है मेरा रूह का रिश्ता ....



तुमसे है मेरा रूह का रिश्ता ....
तुम इस बात से इतफ्फक ना भी रखो ...
तो भी इस बात को झुटला नहीं सकते ...

रूह ने रूह को है पहचाना ...
तुमको पाना ये खवहिश नहीं मेरी  ...
बस तुमसे एक रूहानी रिश्ता है ..
जाने क्यों इन दूरियों ने भी ...
लेना चाहा इम्तिहान फिर भी ...
बस  एक कशिश सी है तुमसे  ....
जाने कबसे है ये सिलसिले चाहत के  ...
जो न ले मिटने का नाम ...
अब तो बस यही है दुआ ...
बना राहे ये खूबसूरत रूह का रिश्ता ...
फिर ना टूट ये डोर दिलो कि  ...
चाहे हो दूरिया दरमिया हमारे  ..
पर मन में न हो फासले हमारे   ....



श्रुति मेहेंदले  14th जनुअरी 2010

Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected