My Shelfari Bookshelf

Shelfari: Book reviews on your book blog

Wednesday, May 19, 2010

तेरी चाहत में ....



ज़िन्दगी  में  तुम  आये .....
तो  तुमसे  है  चाहत ...
जाने  कबसे  है  ...
ये  चाहत  के  सिलसिले ...
मुक्कद्दर  को  न  था  ये  मंज़ूर ..
या  फिर  तुमको  
ये  नहीं  जान  पाई ...
लकिन  फिर  भी ...
ज़िन्दगी  गुज़र  रही  है ...
तेरी  चाहत  में   ....
अब  आलम  ये  है  कि .....
जी  रहें  है ...
तुमको  ना चाहने  कि  जुस्तजू  में ...
तुम  क्यों  हो  ख़फा ज़िन्दगी  से  
ये  तो  मैं  नहीं  जान  पाई  ...
पर  इतना  जानती  हु  कि ......
तुम  हो  मेरे  ही .....
जाने  कितने  जनमों से ...
खुदा  ही  जाने ..
फिर  क्यों  है    ...
ये  दूरिया और  तुम ...
कुछ अनजाने  से .... 

श्रुति मेहेंदले 19th  मे 2010

4 comments:

Unknown said...

चाहत...और.........इन्तजार.....खुबसूरत अभिव्यक्ति.......जहां चाहत मौलिक वृति है तो इन्तजार शाश्वत सत्य.......सुन्दर एवं सशक्त रचना........बधाई.......कृपया मेरे ब्लॉग से भी जुङे।

संजय भास्‍कर said...

ज़िन्दगी में तुम आये .....तो तुमसे है चाहत ...जाने कबसे है ...ये चाहत के सिलसिले ...मुक्कद्दर को न था ये मंज़ूर ..या फिर तुमको ये नहीं जान पाई ...लकिन फिर भी ...ज़िन्दगी गुज़र रही है .....


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

संजय भास्‍कर said...

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected