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Sunday, August 29, 2010

मेरी माँ



तुम जैसी भी थी ,थी तो मेरी माँ ...
आज तुम इस जहा में नही तो क्या ..

तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता ...
आज जब मुड़ के पीछे देखती हू तो ...

वो तेरी छोटी छोटी बाते याद आती है ...
अब उन छोटी छोटी बातो के लिए भी तरसना ..

कभी तो तुमसे हर बात पे बहस करके लड़ना ...
आज उस पलो को फिरसे जीने  के लिए तरसना ..

जो कभी मुझको तुम्हारा टोकना लगता था ...
आज उस टोकने को भी तरस गई हू ...

सोचा कि ये क्या बताने वाली बात है पर ...
आज गम इस बात का है कभी तुझसे कहा नहीं की ...

तुझसे कितना प्यार करती हू ..

श्रुति मेहेंदले  29th अगस्त 2010

7 comments:

अनामिका की सदायें ...... said...

सच ऐसा ही होता है माँ के ना होने से...जब माँ होती है तब इतना महत्त्व नहीं देते उनकी बातों को...और बाद में .....
सुंदर अभिव्यकि.

Kusum Thakur said...

वैसे भी माँ को बताने की जरूरत नहीं होती कि हम उससे कितना प्यार करते हैं ....वह सब समझती है . अच्छी रचना के लिए बधाई !!

Anonymous said...

bahut hi bhawuk rachna....

* મારી રચના * said...

Maa... jitna likhe utna kam hain... sundar rachana...

संजय भास्‍कर said...

अच्छी रचना के लिए बधाई !!

Gopan K said...

सुंदर रचना.

Unknown said...

ye aapki rachnaaon mein best hai abhi tak :)....luvd u expressions really....GOD BLESS U :)....mai bhi apni maa k liye taras rahi hu :(

Welcome to Sentiments

When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected