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Monday, October 19, 2009

बचपन क्यों है चला जाता....

बचपन क्यों है चला जाता....
कभी कभी मै अपने बचपन कि सैर पर निकल पड़ती हु ....
कितना निर्मल और निष्पक्ष होता है ये बचपन ...
ना ये जाने भेद भावः ना ये करे पक्षपात .....
जीवन कितना सरल होता है बचपन का ,,,
बस जहा प्यार मिला वही बे़ल कि तरह पनपने लगता है ...
बचपन कुछ ना मांगे सिर्फ मांगे प्यार और ममता कि चाव ...
जिसका बचपन प्यार और ममता कि छाव से सराबोर होता है ....
वो बड़ा होके एक हरे-भरे वृक्ष कि भांति होता है ....
जो सबको आपनी निर्मल छाया में पनाह देता है ...


श्रुति मेहेंदले 19th ओक्टुबर 2009

3 comments:

शरद कोकास said...

बचपन को तो जाना ही होता है लेकिन फिर हम अपने बच्चों मे अपना बचपन देखते है ।

के सी said...

आप ही ने खुलासा भी कर दिया है, बचपन अक्सर बड़ा होने चला जाता है. हम सब उन दिनों जल्दी बड़ा होना चाहते थे पर उसकी कीमत ये होगी पता भी न था. आप बहुत अच्छा लिखा रही हैं,बधाई !!

Unknown said...

धन्यवाद शरद & किशोर

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When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected