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Tuesday, October 13, 2009

मन कि ये दुविधा मनस्थिति......


मन कि ये  दुविधा मनस्थिति......


कभी अपनी ही परछाई से कतरा के मुह मोड़ लेना तो ....
कभी इसी परछाई में अपनेआप को समेटने कि चाह ..


कभी खून के रिश्ते ही आपनापन खो दे तो ...
कभी बेनाम रिश्तो में अपनेपन कि चाह होना...


श्रुति मेहेंदले 13th ओक्टुबर 2009


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When we connect to any one it is the Sentiments we have with each other that is reflected