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Monday, October 19, 2009

आज कल मै अपनेआप से बात कर लती हु....



आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


जाने क्यों ज़िन्दगी जैसे अनकहे सवालो कि पहेली सी है....
ज़िन्दगी कि इन्ही पहेली को सुल्ज़ने का प्रयास है मेरा ...
जिसे माना है आपना उसे पा के भी ना आपना पाना.....
ये मेरी परिस्थिति खुदही मेरे लिए एक सावल है ...
जिसका जवाब मै रोज़ अपनेआप से तलाशती हू... 
आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


ये जो ज़िन्दगी के ये अनसुलझे सावाल है .....
ज़िन्दगी को एक नया मोडे दे रही है ...
इसको कभी तो मै बड़ी सरलता से आपना लेती हू  ...
जानते हुए कि प्यार सिर्फ पाने का नाम ही नही ...
पर एक अहसास है जिसे हम महसूस करते है .....
और जो हम चाहते है वो ज़रूरी नहीं कि पूरी हो जाये ...


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू .....


पर कभी तो ये परिस्थितिया इतना विवश कर जाती है  ...
कि दिल मजबूर हो रो उठता है आपनी ही विवशता पर .....
ना जाने क्यों वक़्त भी नित नए इम्तिहान देने पर मजबूर है करे ...
किसी को क्या बतलाये अपने मन कि व्यथा ...
जब खुद ही न समझ सकी हु कि " मै ही क्यों "...


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हु..........


खुदा से जो शिकायत है वो अपनेआप से कह देती हू  ....
ये सोच के कि मेरे अंदर का खुदा तो मेरी मदद जरूर करेगा ....
कम से कम इस विवशता को सहने कि क्षमता तो देगा ...
ऐ खुदा कुछ तो राह दिखा इस विवशता से ....


आज कल मै अपनेआप से बात कर लेती हू ..........


श्रुति मेहेंदले 16th ओक्टुबर 2009

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