ये रिश्तो कि अनसुलझी तस्वीर.....
खुदा ही जाने कि रिश्तो कि .....
खुदा ही जाने कि रिश्तो कि .....
नींव कब और कहा रख लेता है इंसा ...
और न जाने कब और कैसे .....
पक्की ईमारत के से रिश्ते ....
जाने किस कारण खँडहर में तब्दील हो जाते है ...
जो रिश्ते लगे कि आज है बने...
न जाने वो कितने जन्मो से चले आ रहे है ...
कभी कभी खून के रिश्ते युही अचानक ...
पराये से हो जाते है ....
खुदा महफूज़ रखे इन रिश्तो को ...
क्योंकि ये रिश्ते ही है जो...
ज़िन्दगी के हर मोड़ पर हमे...
चलते रहने कि मजबूती देते है ....
श्रुति मेहेंदले 4th नवम्बर 2009
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