ज़िन्दगी के काँरवा में कई मोड़ आये .....
और हम उनसे गुज़रते गये .....
इत्तफाक कि बात है .....
जिस मोड़ पे तुमसे रूबरू हुए ....
हमारे कदम वही थम गये ....
जैसे मुसाफिर को अपनी मंजिल मिल गई ...
और हम उनसे गुज़रते गये .....
इत्तफाक कि बात है .....
जिस मोड़ पे तुमसे रूबरू हुए ....
हमारे कदम वही थम गये ....
जैसे मुसाफिर को अपनी मंजिल मिल गई ...
श्रुति मेहेंदले 21st जनुअरी 2010
2 comments:
इतने सुंदर इत्तेफाक कम ही होते हैं. आपने खूबसूरत लफ़्ज़ों से उसे और हसीन बना दिया है.
All poems are truelly beautiful....
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