कभी तो खुदा से तो कभी जान तुम से ...
कभी तो है मिली ख़ुशी तो कभी है मिले गम ..
इसी बात को लेके कभी सुकू है तो कभी शिकायत ...
इस कशमकश में हु कि ....
क्या तुमसे कहू तो क्या खुदा से ...
तुमको पा कर भी है...
तुमसे दूरिया...
वक़्त का है ये कैसा खेल ...
जाने क्यों फिर भी ....
यकी है मुझे....
कुछ अपने खुदा पे ...
तो कुछ अपने प्यार पे ....
श्रुति मेहेंदले 15th जनुअरी 2010
1 comment:
यकी है मुझे....
कुछ अपने खुदा पे ...
तो कुछ अपने प्यार पे ....
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
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