कैसे....
उन लफ्जों को....
बया करू ....
कि तुमतक.....
ये दिल कि बात ....
पहुँच सके ....
तुम अपनेआप में....
इतने सिमट गये कि .....
चाह कर भी तुम तक....
मेरे दिल कि आवाज़ ....
नहीं पहुँचती...
कितनी शिदत से...
है तुमको चाहते ....
कि अपनेआप को....
मिटा कर भी ...
रखा है....
जिंदा खुदही को ....
सिर्फ इसलिये की .....
एक वादा.....
तुमसे भी किया था कि ...
चाहे कितना भी....
दर्द समेटना पड़े....
तुम्हारे....
इश्क में .....
उफ़ तक न करेगे .....
अब तो सिर्फ ...
एक इनायत ...
इस तनहा रूह पे कर ए खुदा...
कि तुमसे फिर एक मुलाकात हो ....
और झाक सकू.....
उन आखों में ....
फिर एक बार ....
और समेट लू कुछ यादे ...
इस दिल के कोने में ...
फिर एक और ज़िन्दगी...
तनहा गुज़ारने को ....
उन लफ्जों को....
बया करू ....
कि तुमतक.....
ये दिल कि बात ....
पहुँच सके ....
तुम अपनेआप में....
इतने सिमट गये कि .....
चाह कर भी तुम तक....
मेरे दिल कि आवाज़ ....
नहीं पहुँचती...
कितनी शिदत से...
है तुमको चाहते ....
कि अपनेआप को....
मिटा कर भी ...
रखा है....
जिंदा खुदही को ....
सिर्फ इसलिये की .....
एक वादा.....
तुमसे भी किया था कि ...
चाहे कितना भी....
दर्द समेटना पड़े....
तुम्हारे....
इश्क में .....
उफ़ तक न करेगे .....
अब तो सिर्फ ...
एक इनायत ...
इस तनहा रूह पे कर ए खुदा...
कि तुमसे फिर एक मुलाकात हो ....
और झाक सकू.....
उन आखों में ....
फिर एक बार ....
और समेट लू कुछ यादे ...
इस दिल के कोने में ...
फिर एक और ज़िन्दगी...
तनहा गुज़ारने को ....
श्रुति मेहेंदले 5th फ़रवरी 2010
1 comment:
एक मुलाकात की आरज़ू में भी कितनी उर्जा छिपी है कि मन संवेदन को झंकृत कर दिया है.
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