चाहत ने भी ....
अपनी चाहत पे कर यकी .....
बेहिसाब चाहत है तुमसे की ....
मेरी चाहत न जाने ....
क्या है ज़रूरी या फिर क्या है मजबूरी ...
ये तो बस तुमको है चाहे ...
लोग जाने क्यों....
फिर भी है कहते ....
ना चाहो इतना किसी को .....
की तुम्हारी चाहत....
बन जाये तुम्हारी मजबूरी ....
पर चाहो इतना किसी को .....
की तुम्हारी चाहत बन जाये ...
ज़रूरी उसके लिय......
श्रुति मेहेंदले 28th फरवरी 2010
1 comment:
मेरी चाहत न जाने ....क्या है ज़रूरी या फिर क्या है मजबूरी ...ये तो बस तुमको है चाहे ..
lajwaab pankitaa
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