SENTIMENTS
Monday, September 17, 2012
Tuesday, September 4, 2012
Dil ki baat dil se suna rahi hu ......
ज़िन्दगी कभी कभी इम्तिहान लेती है....कुछ लोग दिल के करीब कब आ जाते है पता भी नहीं चलता .....जब पता चलता है तो शायद दिल को चोट लग चुकी होती है ....ये किस्सा भी कुछ एसा ही है ...दिल पे जब लगी तब जाना की हम किसी को अपना मान भी ले तो ये ज़रूरी नहीं की वो शख्स हमें भी अपना मानता हो ....बात सोशियल मीडिया की है पीया से मुलाकात हुई ...बातों का दौर गुज़ारा ...हम अजनबी से दोस्ती की और कदम बढ़ाते गए ....दोस्ती का रिश्ता बनाया था तो कुछ ऊंच नीच होना था वो भी हुआ ....फिर भी जो रिश्ता बनाने की कोशिश कर रहे थे वो जुडा रहा....अब इतनी सी बात के लिए पोस्ट तो लिखना नहीं था...बात तब बिघडी एसा मेरा मानना है की दोस्ती में कही कुछ हसी मज़ाक में कही बात से शायद पीया को ठेस लगी ...और न जाने क्या हुआ की अचानक रिश्ता तोड़ने तक बात पहुच गई ....दिल मेरा कुछ ऐसे छटपटाया की कुछ तीखे बाण हमने भी चला दिए दोस्ती पर ....जो होना था वो तो हुआ ...मेरी इस हरकत से संभलने की आस भी ना रही ....मुझे अभी तक नहीं समझ आ रहा की मैंने एसा क्या किया जो पीया ने बोलचाल बंद का दी ...जब मेरा गुस्सा ठंडा हुआ तो समझ पा रही थी ...की इस दोस्ती ने मुझमे जो नहीं था वो भी उजागर कर बाहर आ गया ...आजतक मैंने कभी किसी को तीखे शब्द न कहे थे न मेरी शक्सियत में था ...जाने क्या बात है उसमे की उसका चले जाना सह ना पाई और झल्लाहट में तीखे शब्द बोल दिए ....पर उसकी हरकत पे भी अचंबा था की उस तक पहुँचने के रास्ते भी उसने बंद कर दिए ...एक दोस्त को मन की बात बताई तो उसने कहा कोई जोर ज़बरदस्ती तो नहीं कर सकती किसी के साथ की तुम दोस्त बने रहो ....बात समझ आ भी रही थी पर समझना नहीं चाहती थी ...क्योकी पीया ने भी कुछ एहसास दिलाया था की वो मुझे अपना मानती है...फिर अचानक एसा क्या हुआ की बात करके सुलझाने की कोशिश भी नहीं की ...पर अच्छा लगा जब इस वाकया के कुछ दिनों बाद उसने पहेल की और कहा कि मुझे वक़्त दो ....उसकी इसी बात से दिल को कुछ तसल्ली मिली ...मेरा स्वभाव सबसे जोड़ के रखने में है जब भी कोई मेरी ज़िन्दगी में आया है वो मेरे लिए मेरी आखरी सास तक रहेगा ...तोड़ना मुझे आता नहीं और जब रिश्ते टूटते है तो सच कहू दिल पे बहुत चोट लगती है जिसको भरने में वक़्त लगता है ...मुझे जाने क्यों अब भी आस है ...पर अगर ये एक ज़िन्दगी का तजुर्बा है तो ये मेरी रूह तक को हिला गया है ...पीया तुम जहाँ भी रहो खुश रहो बस यही दुआ दे सकती हु पुरे दिल से ...और तुम भी ये जानती हो की मैं रिश्तो के मामले में दिल की ही सुनती हु ......
दिल से लिखा ......
श्रुति
श्रुति मेहेंदले 4th सितम्बर 2012
Monday, May 14, 2012
Sunday, February 13, 2011
वक़्त के हातो मजबूर ...
ज़िन्दगी वैसे ही एक पहेली है ...
जिसको सुलझाने में इंसान ....
वक़्त बे वक़्त कोई इम्तिहान...
देने में लगा रहता है ...
सिवाय हेरान और परेशान होने के
करे तो क्या करे ..
फिर उसमे आ जा के ...
रिश्तो के अनसुलझे तार ...
जिनको सुलझाने में वक़्त के हातो ....
मजबूर एक कठपुतली कि सी ...
ज़िन्दगी गुजार रहा इंसा ...
सिवाय हेरान और परेशान होने के
करे तो क्या करे ..
ऐसे में गर इश्क हो जाये तो ....
बावरे मन को कोई क्या समझाए कि
ज़रूरी नहीं कि मन जो चाहेगा वो ...
उसको मिल ही जायेगा फिर ....
सिवाय हेरान और परेशान होने के
करे तो क्या करे ..
ज़िन्दगी न जाने क्या क्या दिखलायगी ...
तुम हम तो बस एक कठपुतली है ...
जो वक़्त के हातो मजबूर है ...
सिवाय हेरान और परेशान होने के
करे तो क्या करे ..
श्रुति मेहेंदले 13th फेब्रुअरी 2011
Friday, November 26, 2010
बस यही एक तमन्ना है बाकी ...
जब भी तेरा नाम होटो पे आया ....
दिल से सिर्फ दुआ है निकली ...
तुम खुश रहो बस यही है तमन्ना दिल कि ....
तुम्हारी ख़ुशी में है मैने ढूंढे इस तनहा दिल का सुकून ...
वैसे याद तो उनको करते है ...
जिनको हम भुला देते है ...
जाने क्यों चाह कर भी ...
तुमको भुला न सकी ...
आज भी दिल के एक हिस्से में ..
बस तुम ही हो बसे ...
तुमसे है शिकवे कितने
फिर भी रोज़ ...
तुमको है सजदा करते ...
दर्द तुमने इस दिल को है कितने दिए ...
फिर भी दर्द में मुस्कुराने कि सजा ...
अपने आप को है दी ..
तुमने तो कभी मुड़ के देखा भी नहीं ...
नहीं तो पढ़ लेते इन आखों में कितना है प्यार भरा ...
मैंने तो सिर्फ तुमसे प्यार किया ...
मैंने खुदा से न चाँद माँगा ...
ना मांगी इस जहा कि दौलत ...
मांगी थी तो सिर्फ...
तुमसे जुड़े रहने कि ख़ुशी ...
गम इस बात का नहीं कि राहें है जुदा जुदा ...
गम इस बात का है कि ...
अब है दिलो में फासले कुछ बढे बढे ...
मैंने तो हर बार चाहा कि ये फासले हो कम ...
या खुदा गर एक दुआ हो मेरी भी कबूल ..
तो मिटा दे ये दिलो के फासले ..
बस यही एक तमन्ना है बाकी ...
श्रुति मेहेंदले 26th नवम्बर 2010
Sunday, August 29, 2010
मेरी माँ
तुम जैसी भी थी ,थी तो मेरी माँ ...
आज तुम इस जहा में नही तो क्या ..
तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता ...
आज जब मुड़ के पीछे देखती हू तो ...
वो तेरी छोटी छोटी बाते याद आती है ...
अब उन छोटी छोटी बातो के लिए भी तरसना ..
कभी तो तुमसे हर बात पे बहस करके लड़ना ...
आज उस पलो को फिरसे जीने के लिए तरसना ..
जो कभी मुझको तुम्हारा टोकना लगता था ...
आज उस टोकने को भी तरस गई हू ...
सोचा कि ये क्या बताने वाली बात है पर ...
आज गम इस बात का है कभी तुझसे कहा नहीं की ...
तुझसे कितना प्यार करती हू ..
श्रुति मेहेंदले 29th अगस्त 2010
Wednesday, May 19, 2010
तुमने ये कैसे कह दिया की ....
तुमने ये कैसे कह दिया की...
क्या तुम सच में मेरी जान हो ...
ये सवाल शायद तुम अपनाप से पूछते ...
तो भी जवाब मिल जाता ...
ये बात अलग है कि तुम ...
इस बात को मानना नहीं चाहते ...
तुम अपनेआप से ही भाग रहें हो ...
तो मेरे वजूद पे तो सवाल आ ही जाता है ...
तुमने न जाने क्यों ...
अपनी सोच को इस तहर ढाल लिया है कि ..
जो सच है उसको भी ....
पहचाने से कतराते नहीं ...
माना कि ज़िन्दगी कुछ इम्तिहान ले रही है ...
इसका मतलब ये नहीं ....
जो अपने है उनको भी ....
ज़िन्दगी मैं तुम पराया कर दो ...
ज़िन्दगी मैं ...
मुश्किल से अपने मिलते है ....
कोशिश कर उनको तो संजो के रखो ..
ये न हो जब वक़्त आये ....
अपनेआप से सामना करने का ...
तो आख़ न मिला सको ...
अपनेआप से ...
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
ये ज़रुरी तो नहीं.....
तुमसे जो ये रूह का रिश्ता है.....
उसे कोइ नाम दू......
ये ज़रुरी तो नहीं...
तुम से है महोबत्त....
इसे दुनिया को दिखाऊ....
ये ज़रुरी तो नहीं...
मेरे मन के आइने मे....
तुम्हरी तस्वीर बिल कुल साफ़ है....
किसी को दीखाऊ ....
ये ज़रूरी तो नहीं....
मेरा दिल क्या चाहे ....
तुम ये जान कर भी दीखाओ.....
ये ज़रुरी तो नहीं....
लेकिन इतना जरूर जानती हूँ ...
कि तुम अनजान नहीं हो ...
इस रूह के रिश्ती से ...
बस इसी बात का सुकून है ....
किसी को बताऊ ...
ये ज़रूरी तो नहीं ...
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
दिलो में ना हो फासले ....
ये दूरिय भी गवारा है हमे .......
दिलो में ना हो फासले .......
अब बस यही है दुआ खुदा से .....
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
श्रुति मेहेंदले 19th में 2010
तेरी चाहत में ....
ज़िन्दगी में तुम आये .....
तो तुमसे है चाहत ...
जाने कबसे है ...
ये चाहत के सिलसिले ...
मुक्कद्दर को न था ये मंज़ूर ..
या फिर तुमको
ये नहीं जान पाई ...
लकिन फिर भी ...
ज़िन्दगी गुज़र रही है ...
तेरी चाहत में ....
अब आलम ये है कि .....
जी रहें है ...
तुमको ना चाहने कि जुस्तजू में ...
तुम क्यों हो ख़फा ज़िन्दगी से
ये तो मैं नहीं जान पाई ...
पर इतना जानती हु कि ......
तुम हो मेरे ही .....
जाने कितने जनमों से ...
खुदा ही जाने ..
फिर क्यों है ...
ये दूरिया और तुम ...
कुछ अनजाने से ....
श्रुति मेहेंदले 19th मे 2010
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